Saturday, 24 November 2018

वीरसिंह एक लड़ाकू योद्धा :

बात सन १९८० से शुरू होती है नेटिविस्ट डी डी राउत सेंट्रल रेलवे , मुंबई में ऑडिटर के हैसियत से डायरेक्टर ऑफ़ ऑडिट ऑफिस में काम करते थे और इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड , नैनी , अलाहबाद में डेपुटेशन पर सहायक एकाउंट्स अफसर के पोस्ट पर गए थे तब वह वीरसिंह जी से मुलाकात हुवी। वे सहायक मैनेजर एकाउंट्स के पद पर कुछ ही दिन पहले नियुक्त हुवे थे। वे दिल्ली से थे और नेटिविस्ट राउत मुंबई , महाराष्ट्र से। महाराष्ट्र के लोगो का तब बड़ा आदर किया जाता था। दिल्ली भी छोटी मानी जाती थी और महाराष्ट्र के लोगो को ज्ञानी और सुसंकृत इस का कारण एक ही था महाराष्ट्र में गुंडगर्दी , दहेज़ के उत्पीड़न , बलात्कार , खून , रंगदारी जैसे अपराधोमे मुंबई , महाराष्ट्र बहुत पीछे थी और उत्तर भारत , खासकर उत्तर प्रदेश बहुत आगे था।

नैनी ऑफिस में बहुत जल्द दूसरे सहयोगी ऑफिसर से पहचान हो गयी। हमारे विभाग के प्रमुख के जी गुप्ता थे जो डिप्टी मैनेजर थे और जल्दी ही मैनेजर हो गए थे। हमारे अकौंट्स डिपार्टमेंट के प्रमुख थे सेन साहब और जनरल मैनेजर थे खन्ना साहब। मिश्रा एडमिन डिपार्टमेंट के प्रमुख और हमारे एकाउंट्स डिपार्मेंट में चीफ मैनेजर की पोस्ट पर पांडे थे जो बड़े दबंग माने जाते थे और और मैनेजर कपूर साहब थे जो सेल टैक्स , एक्साइज ड्यूटी आदि मेटर देखतेथे। वे आर्य समाजी थे।

जातिवाद बड़े उफान पर था। ब्राह्मण वर्सेस बनिया लॉबी थी। और पिछड़े लोगो की हालत बहुत ख़राब। एक और पिछड़े एकाउंट्स अफसर थे वर्मा , राजस्थान से आये थे , एम् कॉम फर्स्ट क्लास थे। लेक्चरर की नौकरी छोड़ कर आई टी आई में आये थे , बड़े सुस्वभावी , मेहनती थे उनको पे रोल डिपार्मेंट का एकाउंट्स अफसर बना दिया था और ऊके बॉस मदरसी ब्राह्मण थे और निचे एक दूसरा ब्राह्मण अधिकारी। सारे बोझ बस वर्माजी ढोये जा रहे थे।

इंजिनीरिंग साइड में डी यु नगराले , शशांक , दास पिछड़े लोग थे और स्टाफ में मेश्राम , वंजारी , बोरकर , सोगे , सोमकुंवर ये महाराष्ट्र से पिछड़े स्टाफ काम लार रहे थे। महाराष्ट्र के पिछडो के सहयोग से बाद में नैनी में बामसेफ नाम के संघटन शुरू हुवा था जिस में मौर्य, पासी आदि स्थानीय जुड़ कर एक शसक्त यूनिट बन कर उभर आयी थी।

नेटिविस्ट राउत के डपार्मेन्ट की हालत तो बहुत ख़राब थी एक दबंग सिंह अकॉउंटट थे जो बस हफ्ते के हफ्ते आया करते थे और अटेंडेंस रजिस्टर पर सही जार थे थे। एक उपाध्यय थे उसका शहर में मिठाई का दुकान था और एक और स्टाफ था जो अपंग था और एक स्टाफ था जो ऑफिस के लान पर लेता रहता था। अब सारा काम नेटिविस्ट के जिम्मे था। सेल अकॉउट्स का अफसर नेटिविस्ट डी डी राउत।

सब काम मानुअल। लेजर लिखो , फसिट मशीन पर टैली करो , टैक्स निकला , स्टेटमेंट बनावो , कपूर साहब को स्टेटमेंट दो। स्टाफ की ये हालत , बस काम होना चाहिए। गुप्ता साहब कहते थे सुधार करने की चेष्टा ना करो। जैसा है चले दो। हमने कहा नहीं चलगा। अक्कोउटेन्ट सिंह को रोज आना पड़ेगा , कुछ काम करना पड़ेगा नहीं तो हम उसके नाम जे आगे रेड क्रॉस कर देंगे। अकाउंटेंट सिंह ने हमारे ऊपर बन्दुक तानी , कहा बाहर निकल , गेट पर आये दिन मारपीट होती थी , खून होते थे तब हम में कहा जो करना है कर , नौकरी चाहिए , तन्खा चाहिए तो कुछ काम करना होगा। नेटिविस्ट अङ्ग रहा सिंह आधा दिन आता रहा , दूसरे स्टाफ भी कुछ काम करें लगे।

सोबतिया बाग , करेली कॉलोनी में हम रहे। वीर सिंह ने तब एक बड़े भाई जैसे साथ दिया। कहा घबरावो मत। ये लोग कुछ नहीं कर सकते। वीर सिंह भी काफी मुखर होने के कारण लड़ई में काफी पीछे नहीं रहे , पंडित वादी लोग उनके टेबल पर रोज कचरा रहते थे वे सन्ति से उसे हटवाते , सिपाही जान बुज कर गायब हो जाते थे , पण्डे , सेन से वे लड़ जाते थे पर वर्मा जो पे रोल के अकाउंट ऑफिसर थे वे ये सब बर्दास्त नहीं कर सके, नौकरी छोड़ , नीमच , राजस्तान में फिर लेक्चरर के नाते गए। हमारे एक दूसरे भाई अलाहबाद के एकाउंट्स जनरल ऑफिस से एकाउंट्स ऑफिसर थे , अस ए अस थे डेपुटेशन पर अस्सी मैनेजर के हाशियत से आये थे उनका नाम था लाल। हम उन्हें लाल साहब कहते थे। वीर सींग , राउत , लाल , वर्मा एकाउंट्स में अधिकारी सब बैकवर्ड , सब को परेशानी। लाल साहब डेपुटी मैनेजर की पोस्ट चाहते थे , नहीं दी , वापिस गए एडिशनल डायरेक्टर जनरल अकॉउट्स बने , रिटायर हुवे , अच्छा हुवा आयी टी आयी में नहीं रुके ! नेटिविस्ट राउत अब्सॉर्ब हो कर मुंबई आफिस आये।

वीर सिंह जो बहुत आगे जा सकते थे , किसी न किसी कारण डिप्टी जनरल मैनेजरki पोस्ट से रिटायर्ड हुवे। पर सच बात तो ये है की वे बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के रहे है , उन्होंने जातिवाद , वर्ण वाद को कभी नहीं माना , ट्राइबल से शादी की जो धर्म से क्रिस्चियन है। बहुत ही शालीन और मिलनसार व्यक्तिमत्व है भाभीजी का , उनके एक पुत्र है जो विकलग है उसे पढ़ा या , एम् अस डब्लू कराया जिन का नाम तपन है वो आज वेलफेर ऑफिसर के हैसियत से काम कर रहे है। फॅमिली को वीर सिंगजी ने पहला और अग्रक्रम दिया फिर बौद्ध धर्म और फिर समाज कार्य , राजनीती बाद में ! पर उनकी लड़ाकू वृत्ति ही के कारण वो अपने बच्चे को उच्च शिक्षत बना सके। जब उनका बच्चा ऍम अस डब्लू कर रहे थे वे खुद उसके साथ पाली में एम् ए कर रहे थे।

अभी पिछले हप्ते ९ साल के बाद उनका मुंबई आना हुवा। ७३ के हो चुके है , तपन को मुंबई घूमना चाहते थे। विटी स्टेशन के पास होटल में रुके थे भाभीजी , तपन के साथ पैगोडा आदि स्थान घूम आये। एक दिन इन्होने हमारे लिए निकला। हम धन्य भाग हुवे । कल्याण में उन्होंने कुछ स्तान देखे। बुद्ध भूमि फाउंडेशन का विस्तीर्ण २२ एकड़ परिसर देख कर बहुत प्रसन्न हुवे , प्योर वेज है पर फॅमिली मेंबर जो भiये वो खाये।
हमारे अहो भाग्य लड़ाकू योद्धा वीरसिंह हमारे यहाँ पधारे , कुछ समय दिया। हम और हमारी फॅमिली अनुग्रहित हुवे !

नेटिविस्ट राउत

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