राम सेतु :
उड़ सकता था एक हनुमंत
नहीं उड़ सकती थी पूरी सेना
तब राम ने सेतु बनाना माना
खूब पत्थर इकट्ठा किये
बहुतसे डाले गहन सागर में
जम्बू द्वीप से लंका के अंतर में
डूबे पत्थर तलहटी में गये
पर नहीं बन पाया जरुरी सेतु
लगता था अधुराही रह जाएगा राम का हेतु
तब हनुमंत ने श्रद्धा से पत्थर पर लिखा राम
कहते है सफल हुवा हनुमंत का काम
वो पत्थर तैर उठा जिसपर था राम का नाम
पत्थर पत्थर तैर उठा बस दो अक्षर थे राम नाम के
वो पत्थर डूब गए जो थे न किसी राम के काम के
जब सेतु पूर्ण हुवा तो कुछ क्षण थे आराम के
जब सेतु पूर्ण बना तब वानर सेना लंका में उतरी
खूब लड़ाई थी वो आर्य ब्राह्मण रावण की, उलट गयी पटरी
अंत हुवा रावण का , सीता अयोध्यामे पुष्पक से उतरी
जब लौट चुकी दिग्विजयी राम की वानर सेना
राम सेतु बिखर गया अब किसको था उसपर से जाना
जल पर जो तैर ते थे वे पत्थर अचल कहा रहते थे
समुन्दर के लहरों पर राम नाम के पत्थर बहते थे
एक दिन लहरों पे बह कर उनको किनारे लगना था
जो कभी तैर थे पानी पर एक दिन जमीं में धसना था
जब पड़े जमीं पर तो फिर क्या उठाना था
राम नाम को फिर एक बार अब किसको उनपर लिखना था
जो बहते थे , तैरते थे एक दिन उनको भी जाना है
पर डूब गये वो पत्थर उन्हें ही रामसेतु जमानेने माना है
राम नहीं तो काम नहीं यह कहना अब पुराना है
जो नहीं थे किसी कामके, उनका भी जमाना एकदिन आना है
#जनसेनानी #Jansenani कल्याण
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